महाभारत में एक प्रसंग आता है जब राजा धृतराष्ट्र महात्मा विदुर से मनुष्य की आयु कम होने का कारण पूछते हैं। तब विदुर मनुष्य की आयु कम करने वाले 6 दोषों के बारे में धृतराष्ट्र को बताते हैं। महाभारत के अनुसार यमराज ने ही श्राप के कारण मनुष्य बनकर विदुर के रूप में जन्म लिया था। महात्मा विदुर ने धृतराष्ट्र को मनुष्यों की उम्र कम होने को जो 6 दोष बताए थे, वह इस प्रकार हैं।
धृतराष्ट्र महात्मा विदुर से पूछते हैं:-
जब सभी वेदों में पुरुष को 100 वर्ष की आयु वाला बताया गया है, तो वह किस कारण से अपनी पूर्ण आयु नहीं जी पाता।
विदुर जी कहते हैं:-
अत्यंत अभिमान, अधिक बोलना, त्याग का अभाव, क्रोध, स्वार्थ, मित्रद्रोह- ये 6 तीखी तलवारें मनुष्य की आयु को कम करती हैं। ये ही मनुष्यों का वध करती हैं।
अभिमान यानी घमंड
ऊंचे पद वाले, अपनी प्रशंसा सुनने वाले, स्वयं को बलवान समझने वाले तथा स्वयं को बुद्धिमान, त्यागी, महात्मा मानने वाले लोग अभिमान का शिकार हो जाते हैं। जिस व्यक्ति में यह दोष आ जाता है वह दूसरे लोगों को अपने से निचले स्तर का मानने लगता है और अवसर आने पर उनका अपमान करने से भी नहीं चूकता। घमंड करने वाले के कई शत्रु भी हो जाते हैं। अंत में घमंड ही उस व्यक्ति की मृत्यु का कारण बनता है।
अधिक बोलने वाला
जो व्यक्ति अधिक बोलता है तथा व्यर्थ की बातें करता है, वह सत्य का पूरी तरह से पालन नहीं करता और ऐसी बातें भी कर बैठता है, जिनका परिणाम बुरा होता है। ऐसा व्यक्ति बुद्धिमानों को प्रिय नहीं होता तथा दूसरों पर उसकी बातों का प्रभाव भी नहीं पड़ सकता। इसलिए अधिक शब्दों का प्रयोग न करके वाणी को संयमित रखना चाहिए, क्योंकि असंयमित वाणी से भी आयु कम होती है।
क्रोध यानी गुस्सा
मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु क्रोध है। क्रोधी होने पर मनुष्य उस समय किए गए अपने कर्मों के परिणाम को भूल जाता है, जिससे उसका पतन होता है। श्रीमद्भागवत के अनुसार शरीर अंत से पूर्व जिसने क्रोध को पूरी तरह से जीत लिया, वह मनुष्य इस लोक में योगी और सुखी है। क्रोध को नरक का द्वार भी कहा गया है, जिसका अर्थ है क्रोधी मनुष्य को नरक में जाने के लिए अन्य मार्ग की आवश्यकता ही नहीं पड़ती, क्रोध अकेला ही उसे नरक में ले जाता है। क्रोध के दुष्परिणामों से भी आयु कम होती है।
त्याग का अभाव
त्याग का अभाव होने के कारण ही रावण, दुर्योधन आदि का पतन हुआ। सांसारिक सुख मनुष्य की आयु को काटते हैं और उनका त्याग आयु में वृद्धि करता है। मनुष्य को इस बात का सदैव ध्यान रखना चाहिए कि हम इस संसार से कुछ लेने नहीं बल्कि दूसरों को सुख देने के लिए आए हैं। जिन लोगों के मन में त्याग की भावना नहीं होती, उनकी मृत्यु शीघ्र ही हो जाती है।
स्वार्थ यानी लालच
स्वार्थ यानी लालच ही अधर्म का मूल कारण है। दुनिया में होने वाले अनेक युद्धों का कारण स्वार्थ (भूमि, धन या स्त्री) ही है। स्वार्थी मनुष्य अपना काम साधने के लिए बड़े से बड़ा पाप करने में भी शर्म का अनुभव नहीं करते। वर्तमान परिदृश्य में देखा जाए तो स्वार्थ के कारण ही आज पूरी दुनिया में पाप कर्म बढ़ रहे हैं और चारो ओर अशांति छाई हुई है। जिसके मन में स्वार्थ होता है, उसकी आयु कम हो जाती है।
मित्रद्रोही
मित्रद्रोही यानी अपने मित्र को धोखा देने वाले पुरुष को शास्त्रों में अधम कहा गया है। मनुष्य जीवन में मित्रों का बहुत महत्व है। मित्रता से एक नई शक्ति का निर्माण होता है, जिससे शत्रुओं को भी भय होता है। पतन की ओर जाते हुए कई पुरुषों का उत्थान मित्रों ने किया है। मित्रद्रोही मनुष्य का जीवन नरक के समान होता है। मित्रद्रोही नामक दोष से बचने के लिए त्याग और दूसरोंj का हित करना परम आवश्यक है।
महात्मा विदुरजी ने आयु को काटने वाले जो 6 दोष बतलाए हैं, वे सभी प्राय: एक-दूसरे पर ही निर्भर है। इसलिए इन दोषों से बचना चाहिए।
コメント