ग्रहों के कारण व्यक्ति प्रेम करता है और इन्हीं ग्रहों के प्रभाव से दिल भी टूटते हैं। ज्योतिष शास्त्रों (jyotish shastro) में प्रेम विवाह के योगों के बारे में स्पष्ट वर्णन नहीं मिलता है, परन्तु प्रेम विवाह असफल रहने के कई कारण होते है :-
शुक्र व मंगल की स्थिति व प्रभाव प्रेम संबंधों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। यदि किसी जातक की कुण्डली (kundali) में सभी अनुकूल स्थितियाँ होते हुई भी, शुक्र की स्थिति प्रतिकूल हो तो प्रेम संबंध टूटकर दिल टूटने की घटना होती है।
सप्तम भाव या सप्तमेश का पाप पीड़ित होना, पापयोग में होना प्रेम विवाह की सफलता पर प्रश्नचिह्न लगाता है। पंचमेश व सप्तमेश दोनों की स्थिति इस प्रकार हो कि उनका सप्तम-पंचम से कोई संबंध न हो तो प्रेम की असफलता दृष्टिगत होती है।
शुक्र का सूर्य के नक्षत्र में होना और उस पर चन्द्रमा का प्रभाव होने की स्थिति में प्रेम संबंध होने के उपरांत या परिस्थितिवश विवाह हो जाने पर भी सफलता नहीं मिलती। शुक्र का सूर्य-चन्द्रमा के मध्य में होना असफल प्रेम का कारण है।
पंचम व सप्तम भाव के स्वामी ग्रह यदि धीमी गति के ग्रह हों तो प्रेम संबंधों का योग होने या चिरस्थायी प्रेम की अनुभूति को दर्शाता है। इस प्रकार के जातक जीवनभर प्रेम प्रसंगों को नहीं भूलते चाहे वे सफल हों या असफल।
प्रेम विवाह के लिए जन्मकुण्डली (kundali) के पहले, पाँचवें सप्तम भाव के साथ-साथ बारहवें भाव को भी देखें क्योंकि विवाह के लिए बारहवाँ भाव भी देखा जाता है। यह भाव शय्या सुख का भी है। इन भावों के साथ-साथ उन (एक, पाँच, सात) भावों के स्वामियों की स्थिति का पता करना होता है। यदि इन भावों के स्वामियों का संबंध किसी भी रूप में अन्य भावों से बन रहा हो तो निश्चित रूप से जातक प्रेम विवाह करता है।
अन्तरजातीय विवाह के मामले में शनि की मुख्य भूमिका होती है। यदि कुण्डली (kundali) में शनि का संबंध किसी भी रूप से प्रेम विवाह कराने वाले भावेशों के भाव से हो तो जातक अन्तरजातीय विवाह करेगा। जीवनसाथी का संबंध सातवें भाव से होता है, जबकि पंचम भाव को सन्तान, विद्या एवं बुद्धि का भाव माना गया है, लेकिन यह भाव प्रेम को भी दर्शाता है। प्रेम विवाह के मामलों में यह भाव विशेष भूमिका दर्शाता है।
प्रेम एक दिव्य, अलौकिक एवं वंदनीय तथा प्रफुल्लता देने वाली स्थिति है। प्रेम मनुष्य में करुणा, दुलार, स्नेह की अनुभूति देता है। फिर चाहे वह भक्त का भगवान से हो, माता का पुत्र से या प्रेमी का प्रेमिका के लिए हो, सभी का अपना महत्व है। प्रेम और विवाह, विवाह और प्रेम दोनों के समान अर्थ है लेकिन दोनों के क्रम में परिवर्तन है। विवाह पश्चात पति या पत्नी के बीच समर्पण व भावनात्मकता प्रेम का एक पहलू है। प्रेम संबंध का विवाह में रूपांतरित होना इस बात को दर्शाता है कि प्रेमी-प्रेमिका एक दूसरे से भावनात्मक रूप से इतना जुड़े हुए हैं कि वे जीवनभर साथ रहना चाहते हैं।
हिन्दू संस्कृति में जिन सोलह संस्कारों का वर्णन किया गया है उनमें से विवाह एक महत्वपूर्ण संस्कार है। जीवन के विकास, उसमें सरलता और सृष्टि को नया रूप देने के लिए विवाह आवश्यक प्रक्रिया है, इस सच्चाई को नकारा नहीं जा सकता है।
प्रेम संबंध का परिणाम विवाह होगा या नहीं, ज्योतिष (astrology) का आश्रय लेकर काफी हद तक भविष्य के संभावित परिणामों के बारे में जाना जा सकता है। दिल लगाने से पूर्व या टूटने की स्थिति न आए, इस हेतु प्रेमी-प्रेमिका को अपनी जन्मपत्रिका के ग्रहों की स्थिति किसी योग्य ज्योतिषी (astrologer) से अवश्य पूछ लेनी चाहिए। प्रेम ईश्वर का वरदान है। प्रेम करें अवश्य लेकिन सोच-समझकर, कुंडली (kundali) दिखाकर।
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