वैसे तो पूरा साल ही भगवान के पूजन के लिए शुभ माना जाता है, लेकिन हर देवी-देवता का विशेष दिन और तिथियां होती है, जैसे रामनवमी, हनुमान जंयती, कृष्ण जन्माष्टमी गणेशोत्सव और मां दुर्गा के पूजन के लिए नवरात्रि आदि। लेकिन भगवान शिव (shiv ji) के पूजन के लिए भक्तों को सबसे लंबा समय मिलता है पूरा सावन का महीना। लेकिन कई बार मन में सवाल उठता है कि भगवान शिव को सावन माह इतना प्रिय क्यों है? क्या वजह है कि सावन में शिवजी के पूजन और अभिषेक का फल कई गुना बढ़कर मिलता है। ऐसा क्या है इस माह में शिवजी सबसे जल्द प्रसन्न हो जाते हैं।
तो आइए जानते है शिव को क्यों प्रिय है सावन माह (Sawan month)
1. ऋषि मृकण्ड के पुत्र मार्कण्डेय ऋषि ने अपने माता-पिता के सुख व खुशी के लिए और दीर्घायु का वरदान प्राप्त करने के लिए सावन माह में ही घोर तप कर महामृत्युंजय मंत्र की रचना की थी,सावन माह में ही उन्होंने शिव की कृपा प्राप्त की थी, जिससे मिली मंत्र शक्तियों के सामने मृत्यु के देवता यमराज भी नतमस्तक हो गए थे।
2. भगवान शिव को सावन का महीना प्रिय होने का अन्य कारण यह भी है कि भगवान शिव सावन के महीने में पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गए थे और वहां उनका स्वागत अर्घ्य और जलाभिषेक से किया गया था। माना जाता है कि प्रत्येक वर्ष सावन माह में भगवान शिव अपनी ससुराल आते हैं। भू-लोक वासियों के लिए शिव कृपा पाने का यह उत्तम समय होता है।
3. पौराणिक कथाओं में वर्णन आता है कि इसी सावन मास में समुद्र मंथन किया गया था। समुद्र मथने के बाद जो हलाहल विष निकला, उसे भगवान शंकर ने कंठ में समाहित कर सृष्टि की रक्षा की; लेकिन विषपान से महादेव का कंठ नीलवर्ण हो गया। इसी से उनका नाम 'नीलकंठ महादेव' पड़ा। विष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया। इसलिए शिवलिंग (shiling) पर जल चढ़ाने का खास महत्व है। यही वजह है कि श्रावण मास में भोले को जल चढ़ाने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
4. 'शिवपुराण' में उल्लेख है कि भगवान शिव स्वयं ही जल हैं। इसलिए जल से उनकी अभिषेक के रूप में अराधना का उत्तमोत्तम फल है, जिसमें कोई संशय नहीं है।
5. शास्त्रों (shastro) में वर्णित है कि सावन महीने में भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं। इसलिए ये समय भक्तों, साधु-संतों सभी के लिए अमूल्य होता है। यह चार महीनों में होने वाला एक वैदिक यज्ञ है, जो एक प्रकार का पौराणिक व्रत है, जिसे 'चौमासा' भी कहा जाता है; तत्पश्चात सृष्टि के संचालन का उत्तरदायित्व भगवान शिव ग्रहण करते हैं। इसलिए सावन के प्रधान देवता भगवान शिव बन जाते हैं।
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