शनि देव (shani dev) को सौरमंडल का सबसे धीमा ग्रह (planet) माना जाता है, सूर्य की पूरी परिक्रमा करने में भी यह अन्य ग्रहों के मुकाबले ज्यादा समय लेते हैं, जब भी यह किसी व्यक्ति की कुंडली (kundali) में प्रवेश करते है तो इन्हें उस कुंडली (kundali) से बाहर निकले में साढ़े सात साल का समय लगता है, और इसी समय को शनि (shani) की साढ़े साती कहा जाता है। यह समय जातक के लिए काफी मुश्किल भरा होता है। इस मुश्किल समय को आसान बनाने के लिए शनिदेव (shani dev) की उपासना करना बहुत जरूरी होता है। शनि की पूजा करने और उन्हें प्रसन्न करने से शनि के कष्टों से मुक्ति मिलती है। वैसे तो जातक को प्रत्येक दिन शनि की पूजा करना चाहिए लेकिन शनि जयंती (shani jayanti) वह खास दिन होता है जब व्यक्ति उनकी पूजा करता है तो उसका फल कई गुना बढ़ कर मिलता है।
शनि जयंती (shani jayati 2021) का महत्व
शनि जयंती (shani jayanti) के दिन शनि देव की पूजा करने से जातकों पर शनि की बुरी दृष्टि नहीं पड़ती है और शनि दोष (shani dosh) से छुटकारा मिलता है। शनि देव को कर्म फलदाता भी कहा जाता है। ये व्यक्ति को उनके कर्मों के अनुसार ही फल देते हैं। शनि जयंती (shani jayanti) पर न्याय के देवता की पूजा करने से जातकों को शनिदोष और ढैय्या, साढ़ेसाती के अशुभ प्रभावों से मुक्ति मिलती है।
शनिदेव (shani dev) की जन्म कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार, सूर्य देव का विवाह संज्ञा के साथ हुआ था। लेकिन संज्ञा सूर्य देव के तेज को सहन नहीं कर पाती थीं। जब संज्ञा के लिए सूर्य देव का तेज सहना मुश्किल होने लगा तो संज्ञा अपनी परछाई छाया को सूर्यदेव के पास छोड़ कर चली गईं। इस दौरान सूर्यदेव को भी छाया पर जरा भी संदेह नहीं हुआ। दोनों खुशी-खुशी जीवन व्यतीत करने लगे। जब शनिदेव (shani dev) छाया के गर्भ में थे तो उस समय छाया खूब तपस्या, व्रत-उपवास आदि किया करती थीं। कहते हैं कि उनके अत्यधिक व्रत उपवास करने से शनिदेव का रंग काला हो गया। जब शनि का जन्म हुआ तो सूर्य देव अपनी इस संतान को देखकर हैरान हो गए। उन्होंने शनि के काले रंग को देखकर उसे अपनाने से इनकार कर दिया और छाया पर आरोप लगाया कि यह उनका पुत्र नहीं हो सकता, लाख समझाने पर भी सूर्यदेव नहीं माने। स्वयं और अपनी माता के अपमान के कारण शनि देव सूर्य देव से शत्रु का भाव रखने लगे। आज भी दोनों के बीच शत्रु का भाव है।
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