प्रथम पूज्य भगवान गणेश, संकटमोचन श्री हनुमान जी महाराज और काल भैरव ये सिर्फ तीन ऐसे भगवान है जिन्हें श्रृंगार के रूप में सिंदूर का लेपन किया जाता है, धार्मिक भाषा में इसे चोला चढ़ाना कहा जाता है। भगवान गणेश को बुधवार के दिन व काल भैरव को रविवार के दिन चोला चढ़ाया जाता है सिर्फ श्री हनुमानजी को सप्ताह में दो दिन मंगलवार और शनिवार को चोला चढ़ाने की मान्यता है। श्री हनुमान जी को चोला चढ़ाने का अपना अलग महत्व है, चोला चढ़ाने से बजरंगबली प्रसन्न होते हैं और उनकी विशेष कृपा भक्तों को प्राप्त होती है। लेकिन भगवान को चोला चढ़ाने की विधि हैं और कई सावधानियां भी है, बिना सही जानकारी के कई बार भक्त भगवान को चोला तो अर्पित करते हैं लेकिन उनसे कई चूक हो जाती है और भगवान की कृपा प्राप्त होने के बजाए उन्हें नुकसान उठाना पड़ जाता है। इसलिए एस्ट्रोभूमि प्लेटफॉर्म अपने पाठकों के लिए श्री हनुमान जी को चोला चढ़ाने की सही विधि, क्रम और सावधानियों की विस्तृत जानकारी लेकर आया है जिससे भक्तों को पूरा लाभ मिल सके। आईए जानते है...
चोला (chola) चढ़ाने से लाभ
श्री हनुमान जी महाराज को चोला चढाने से साधक को हनुमान जी कृपा प्राप्त होती हैं, ऐसा करने से हनुमान जी प्रसन्न होते हैं और जातक पर चल रही शनि की साढ़े साती, ढैया, दशा या अंतरदशा या राहू या केतु की दशा या अंतरदशा में हो रहे कष्ट समाप्त हो जाते हैं, साथ ही साधक के संकट और रोग दूर होते हैं और जातक दीर्घायु होता है। हनुमान जी को सिंदूर का चोला चढ़ाने से श्रीराम जी की विशेष कृपा भी प्राप्त होती है।
हनुमान जी को चोला चढ़ाने की सामग्री
हनुमान जी को चोला चढ़ाने के लिए श्री हनुमान जी वाला सिंदूर, गाय का घी या चमेली का तेल, शुद्ध गंगाजल मिश्रित जल, चांदी या सोने का वर्क या माली पन्ना (चमकीला कागज), धूप व दीप , श्री हनुमान चालीसा।
चोला चढ़ाने की विधि
हनुमान जी को चोला चढ़ाने से पहले पुराना चोला उतारकर साफ गंगाजल से मिश्रित जल से भगवान को स्नान करना चाहिये। स्नान के बाद प्रतिमा को साफ कपड़े से पोछने के बाद सिंदूर में घी या चमेली का तेल मिलाकर गाढ़ा लेप बना ले इसके बाद सीधे हाथ से हनुमान जी के सिर से आरंभ करके सम्पूर्ण शरीर पर लेपन करें।
चोला चढ़ाते वक्त जरूर रखें ये सावधानियां
1) श्री हनुमान जी को चोला मंगलवार, शनिवार या विशेष पर्व जैसे हनुमान जंयती, रामनवमी, दीपवाली व होली के दिन चढ़ा सकते है। इसके अलावा अन्य दिन चोला चढ़ाना निषेध माना गया हैं।
2) हनुमान जी के लिए लगाने वाला सिंदूर सवा के हिसाब से लगाना चाहिए जैसे की सवा पाव ,सवा किलो आदि ।
3) सिंदूर में मंगलवार के दिन देसी गाय का घी एवं शनिवार के दिन केवल चमेली के तेल का ही प्रयोग करना चाहिए।
4) हनुमान जी को चोला चढ़ाने के समय साधक को पवित्र यानी साफ लाल या पीले रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए।
5) हनुमान जी को चोला चढ़ाने से पहले पुराने चोले को जरूर उतारना चाहिए और उसके बाद उस चोले को बहते हुए जल में बहा देना चाहिए।
6) हनुमान जी की प्रतिमा पर चोला का लेपन अच्छी तरह मलकर, रगड़कर चढ़ाना चाहिए उसके बाद चांदी या सोने का वर्क चढ़ाना चाहिए।
7) श्री हनुमान जी को स्त्री द्वारा चोला नही चढ़ाना चाहिए और ना ही चोला चढ़ाते समय स्त्री मंदिर में होनी चाहिए।
8) हनुमान जी को चोला चढ़ाते समय साधक की श्वास प्रतिमा पर नहीं लगनी चाहिए।
चोला चढ़ाते समय दिए गए मंत्र का जाप करते रहना चाहिए।
‘‘सिन्दूरं रक्तवर्णं च सिन्दूरतिलकप्रिये । भक्तयां दत्तं मया देव सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम।।’’
जानें चोला (chola) चढ़ाने का सही क्रम
श्री हनुमान जी को चोला सृष्टि क्रम ( पैरों से मस्तक तक चढ़ाने में देवता सौम्य रहते हैं ) में चढ़ाना चाहिए ।
संहार क्रम ( मस्तक से पैरों तक चढ़ाने में देवता उग्र हो जाते हैं )। यदि आपको कोई मनोकामना पूरी करनी है तो पहले उग्र क्रम से चढ़ाए मनोकामना पूरी होने के बाद सौम्य क्रम में चढ़ाएं। चोला चढ़ाने के बाद हनुमान जी को लड्डू का भोग लगाकर धूप दीप के बाद क्षमा याचना करें।
ऐसे करें धूप-दीप :
अब इस मंत्र के साथ हनुमानजी को धूप-दीप दिखाएं -
साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना योजितं मया।
दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापहम्।।
भक्त्या दीपं प्रयच्छामि देवाय परमात्मने।।
त्राहि मां निरयाद् घोराद् दीपज्योतिर्नमोस्तु ते।।
ऊँ हनुमते नम:, दीपं दर्शयामि।।
पूजन वंदन :
इसके पश्चात एक थाली में कर्पूर एवं घी का दीपक जलाकर 11 बार श्री हनुमान चालीसा (hanuman chalisa) का पाठ करे व अंत में श्री हनुमानजी की आरती करें। इस प्रकार पूजन करने से हनुमानजी अति प्रसन्न होते हैं तथा साधक की हर मनोकामना पूरी करते हैं।
क्षमा याचना :
श्री हनुमानजी पूजन के पश्चात अज्ञानतावश पूजन में कुछ कमी रह जाने या गलतियों के लिए भगवान् श्री हनुमानजी के सामने हाथ जोड़कर निम्नलिखित मंत्र का जप करते हुए क्षमा याचना करे।
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरं ’ यत पूजितं मया देव, परिपूर्ण तदस्त्वैमेव ल।।
आवाहनं न जानामि, न जानामि विसर्जनं ’ पूजा चैव न जानामि, क्षमस्व परमेश्वरं ।।
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